16 सोमवार व्रत
पवित्र माह श्रावण में भगवान शिव की कृपा पाने के लिए सोलह सोमवार व्रत का विधान शास्त्रों में बताया गया है। इसे संकट सोमवार व्रत भी कहते हैं। यह व्रत लगातार 16 सोमवार के दिन किया जाता है और इसकी शुरुआत श्रावण माह के शुक्ल पक्ष में आने वाले पहले सोमवार से की जाती है। इस वर्ष श्रावण शुक्ल पक्ष का पहला सोमवार 27 जुलाई को आ रहा है। इस दिन से 16 सोमवार व्रत प्रारंभ करके लगातार 16 सोमवार को व्रत रखकर शिवजी-माता पार्वती की पूजा की जाती है। श्रावण के अलावा 16 सोमवार का व्रत चैत्र, बैशाख, कार्तिक और माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से भी शुरू किया जा सकता है। शास्त्रों का कथन है कि इस व्रत को 16 सोमवार तक श्रद्धापूर्वक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
क्यों किया जाता है 16 सोमवार व्रत
16 सोमवार व्रत को संकट सोमवार व्रत भी कहते हैं। इस व्रत को मुख्यत: किसी बड़े संकट से छुटकारे के लिए संकल्प लेकर किया जाता है। यदि आप आर्थिक रूप से बुरी तरह संकट में फंसे हुए हैं, घर-परिवार में कोई न कोई लगातार गंभीर रोगों से पीड़ित हो रहा है। परिवार पर एक के बाद एक लगातार संकट आते जा रहे हैं तो यह व्रत अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा जिन युवतियों का विवाह नहीं हो पा रहा है, किसी न किसी कारण से विवाह तय नहीं हो पा रहा है तो उन्हें भी 16 सोमवार का व्रत करना चाहिए।
16 सोमवार व्रत की विधि
शास्त्रों में बताई विधि के अनुसार 16 सोमवार व्रत प्रारंभ करने के लिए श्रावण माह के शुक्ल पक्ष में आने वाले पहले सोमवार को चुना जाता है। इस दिन व्रती सूर्योदय पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर शिवजी की पूजा करे और अपने संकट से मुक्ति के लिए भगवान शिवजी के सामने 16 सोमवार व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद दिन भर अन्न्, जल ग्रहण ना करें। शाम को आधा सेर गेहूं के आटे का चूरमा बनाएं, शिवजी की पूजा करें। पूजा में बेलपत्र, आंकड़े के फूल, धतूरे आदि अर्पित करें। चूरमा भगवान शिवजी को चढ़ाएं और फिर इस प्रसाद के तीन भाग करें। एक भाग प्रसाद के रूप में लोगों में बांटे, दूसरा गाय को खिलाएं और तीसरा हिस्सा स्वयं खाकर पानी पिएं। इस विधि से सोलह सोमवार करें और सत्रहवें सोमवार को पांच सेर गेहूं के आटे की बाटी का चूरमा बनाकर भोग लगाकर प्रसाद बांट दें। फिर परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करें। ऐसा करने से शिवजी सारे मनोरथ पूरे करते हैं। जिस संकट के समाधान का संकल्प लेकर व्रत किया जाता है वह अवश्य दूर होता है।
विशेष नियम
सबसे लोकप्रिय व्रतों में से 16 सोमवार का व्रत है। अविवाहिताएं इस व्रत से मनचाहा वर पा सकती हैं। वैसे यह व्रत
हर उम्र और हर वर्ग के व्यक्ति कर सकते हैं लेकिन नियम की पाबंदी के चलते वही लोग इसे करें जो क्षमता रखते हैं। विवाहित इसे करने से पहले ब्रह्मचर्य नियमों का ध्यान रखें। व्रत के विशेष नियम है-
1. सूर्योदय से पहले उठकर पानी में कुछ काले तिल डालकर नहाना चाहिए।
2. अब भगवान शिव की उपासना करें। सबसे पहले तांबे के पात्र में शिवलिंग रखें।
3. भगवान शिव का अभिषेक जल या गंगाजल से होता है, परंतु विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के
लिए दूध, दही, घी, शहद, चने की दाल, सरसों तेल, काले तिल, आदि कई सामग्रियों से अभिषेक
की विधि प्रचलित है।
4. इसके बाद 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र के द्वारा श्वेत फूल, सफेद चंदन, चावल, पंचामृत, सुपारी, फल
और गंगाजल या स्वच्छ पानी से भगवान शिव और पार्वती का पूजन करना चाहिए।
5. अभिषेक के दौरान पूजन विधि के साथ-साथ मंत्रों का जाप भी बेहद आवश्यक माना गया है।
महामृत्युंजय मंत्र, भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र या अन्य मंत्र, स्तोत्र जो कंठस्थ हो।
6. शिव-पार्वती की पूजा के बाद सोमवार की व्रत कथा करें।
7. आरती करने के बाद भोग लगाएं और घर परिवार में बांटने के बाद स्वयं ग्रहण करें।
8. नमक रहित प्रसाद ग्रहण करें।
9. दिन में शयन न करें।
10. प्रति सोमवार पूजन का समय निश्चित रखें।
11. प्रति सोमवार एक ही समय एक ही प्रसाद ग्रहण करें।
12. प्रसाद में गंगाजल, तुलसी, लौंग, चूरमा, खीर और लड्डू में से अपनी क्षमतानुसार किसी एक का
चयन करें।
13. 16 सोमवार तक जो खाद्य सामग्री ग्रहण करें उसे एक स्थान पर बैठकर ग्रहण करें, चलते फिरते
नहीं।
14. प्रति सोमवार एक विवाहित जोड़े को उपहार दें। (फल, वस्त्र या मिठाई)
15. 16 सोमवार तक प्रसाद और पूजन के जो नियम और समय निर्धारित करें उसे खंडित ना होने दें।
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